ग़ज़ल
अभिशाप है गरीबी इसे तुम मिटा लो,
हर जगह सिर झुकाने से सिर ही कट्टा लो
आजकल के अफसर बस पैसा चाहते है ,
जेसे भी पटे वो उन्हें तुम पटा लो ।
नौकरी के लिए मिनिस्टर का टेलीफ़ोन हो,
तुम भी लिखवा के पटा ऐसा साधन जुटा लो।
दस लाख उमीदवार है दस नोकरिया है ।
कड़ा संघर्ष है लफ्ज-लफ्ज तुम रटा लो।
ऐसी ही है अर्पण आज की शक्शियत,
आज से दिल को सत्य मार्ग से हटा लो ।
राजीव अर्पण