Wednesday, 4 May 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभिशाप है गरीबी इसे तुम मिटा लो,

हर जगह सिर झुकाने से सिर ही कट्टा लो

आजकल के अफसर बस पैसा चाहते है ,

जेसे भी पटे वो उन्हें तुम पटा लो ।

नौकरी के लिए मिनिस्टर का टेलीफ़ोन हो,

तुम भी लिखवा के पटा ऐसा साधन जुटा लो।

दस लाख उमीदवार है दस नोकरिया है ।

कड़ा संघर्ष है लफ्ज-लफ्ज तुम रटा लो।

ऐसी ही है अर्पण आज की शक्शियत,

आज से दिल को सत्य मार्ग से हटा लो ।

राजीव अर्पण

1 comment:

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