यह क्या
मेरी नग्मा फिरोश आँखों ने ,
आखिर एक नग्मा ढूंढ़ लिया .
अर्पण
जी ही लेगे दिल को घुट के ,
मेरी बरबादी का तुझे रंज केसा .
राजीव अर्पण
किसी पे क्या गुजरी तू क्या जाने सनम ,
तेरे एक ही अलफाज ने दे दिये गम ही गम .
अर्पण
इकरार चाहा इन्कार मिला ,
फिर भी तुम से नही खुद से है गिला .
अर्पण
जब भी खुशिया चाही है गम मिला है ,
सनम बस अपनी जिन्दगी से गिला है .
राजीव अर्पण
देख कर इस कदर मुह फेरते है वो ,
हाय जीने से बेहतर लगता है मर जाना .
अर्पण
उन के होठो पे अपना जिकर आया ,
मुझे फिर जीने का फिकर आया .
राजीव अर्पण फिरोजपुर शहर
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