यह सरूरे इलाहीई है
अर्पण यह सरूरे इलाहीई है ,
उस खुदा की ख़ुदाई है .
यह उस की रहम दिली है ,
तुम संग उसकी वफाई है .
बक्शी है रहमत तुमको ,
दी कलम मे प्यार की सहाई है .
रगों मे खून दोड़ता है ,
जब भी लिखी रुबाई है .
महकता है तेरा रोम-रोम ,
जब भी कोई नज्म गाई है .
जगमगाता है अन्दर का सनाटा ,
जब गजल की आवद आई है
अर्पण पूरा है कुछ नही चाहिये ,
अभी गीत ने दिल मे ली अंगडाई है
राजीव अर्पण
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