दूर इश्क हकीकी
इतना सोचा के सोच के बाहर हो गया ,
बस तू -है तू ही है तुझ मे खो गया !
तू मिला तो हुआ है मुझ से ,
पर मुझे ही सबर नही !
क्या मिला है मुझे ,
मुझे यह भी खबर नही !
अकल के बहार है तेरी यह धरती ,
ओर दूसरी धरतीयो का अंत नही !
तेरे गच्चे ,गोशे इक किनके का भी ईलम नही ,
तेरी अरमानो जेसी फ़िजायो ,घटायो ,हवायो ,
सपनों सी दुनिया का ईलम किसे ,
जिन का जिस्म नही !
यह सब मेरी अकल से दूर हो गया ,
मेरे खुदाया तू मेरा महरम मै तेरा माशूक हो गया !
राजीव अर्पण फिरोजपुर शहर पंजाब
भारत
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