गुम
मेरे लिखने की वो परवाज गुम ,
साज गुम आवाज गुम !
लिखने के वो राज गुम ,
मुंह वोलते वो अंदाज गुम !
पैसे के दहकते मरुस्थल में ,
इश्क के वो रिवाज गुम !
दिल से आती थी दिमाग में ,
उस गजल का अगाज गुम !
मुझे देख कर सवारती थी लटे ,
उसके वो नखरे-नाज गुम !
राजीव अर्पण
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लफ्ज
लफ्ज दिये आवाज ना दी .
मुझे जीने के लिये परवाज ना दी
राजीव अर्पण
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