Monday, 20 May 2013

मृग तृष्णा

        मृग तृष्णा
मृग तृष्णा सी रही अपनी तो जिन्दगी ,
जिन्दगी भर चले मगर प्यार पानी ना मिला !
लगता तो रहा दो कदम पे खड़ा है सनम ,
मगर साथ देने के लिये कोई सानी ना मिला !
                      राजीव अर्पण
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               छुआ
ना जाने क्यू मै सोचता ही चला गया ,
जब कि सोचा हुआ कभी पूरा ना हुआ !
ख्वाबो मे तो हम बहुत दूर तक गये ,
मगर हकीकत मे उस का आंचल तक ना छुआ !
                     राजीव अर्पण
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             केसे लिख दू
केसे लिख दू इन कागजो पे प्यार को अपने ,
केसे दिखाऊ मेने जो देखे है सपने !
तेरा दिल कोन देख सकता है अर्पण ,
जो उनके ना मिलने पर लगता है तड़पने !
       राजीव अर्पण नंजदीक तुड़ी बजार
       फिरोजपुर शहर पंजाब भारत
      



 

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