जो इश्क ने लगाई
जो इश्क ने दिल मे आग लगाई वो आज तक नही बुझी ,
तुम से हो मुहब्बत इस के सिवा कुछ और ना सूझी .
इजहारे मुहब्बत के साथ इकरारे मुहब्बत भी किया होता ,
मुझ से दूर जो महकते रहे मेरे पहलू मे भी कुछ रोज जिया होता .
झुलसती ना यह जवानी ,गम की आग मे बन के बांवरी ,
अगर मेरे आंगन मे आये होते तू मेरा सुंदर सा पिया होता .
मेरे खुदा मैंने तुम से कुछ ज्यादा तो नही मांग लिया था ,
मेरा महबूब होता ,इस छोटे से घर -आंगन मे रोशन दीया होता .
चंद रोज की जवानी थी ,वो भी गई बेबसी मे ,सिसकिया भर के ,
तेरे बड़े जहान मे हँस -खेल के गुजार लेते तो तेरा क्या लिया होता .
वेसे तो इस जहान में तमना एक से एक बडती ही जाती है ,
मेरी तो बस एक तमन्ना पूरी करता तो तेरे गुणगान मे अर्पण मिया होता .
राजीव अर्पण ,फिरोजपुर शहर पंजाब भारत
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