Wednesday 4 May 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभिशाप है गरीबी इसे तुम मिटा लो,

हर जगह सिर झुकाने से सिर ही कट्टा लो

आजकल के अफसर बस पैसा चाहते है ,

जेसे भी पटे वो उन्हें तुम पटा लो ।

नौकरी के लिए मिनिस्टर का टेलीफ़ोन हो,

तुम भी लिखवा के पटा ऐसा साधन जुटा लो।

दस लाख उमीदवार है दस नोकरिया है ।

कड़ा संघर्ष है लफ्ज-लफ्ज तुम रटा लो।

ऐसी ही है अर्पण आज की शक्शियत,

आज से दिल को सत्य मार्ग से हटा लो ।

राजीव अर्पण

दोस्त

दोस्ती


दोस्तों की दोस्ती से बाज़ आ गये ,

हम को अकेले जीने के राज आ गये ।

जज्बातों माँ लुट जाने के बाद ।

इस दुनिया के रस्मो रिवाज आ गये,

तेरे अंदाज से अब बहलु गा नही,

अनदज को बे-अंदाज करने के अंदाज आ गये ।

अब मेरी ग़ज़ल अन्देरो मे गम ना होगी ,

उन को मह्क्काने के लिए सुर-साज आ गये ।

अच्छा करे बुरा करे अर्पण तेरा है ,

वो देख हियर दिल के सरताज आ गये ।


राजीव अर्पण

Tuesday 3 May 2011

तोबा -तोबा

तोबा-तोबा

हमे तुम संग प्यार हुआ तोबा तोबा ।

मेरा और दिल का हाल ना पुछेये गा,

तेरे इशक का खुमार हुआ तोबा तोबा

तुम से प्यार का इजहार हुआ तोबा तोबा ।

मेरा दिल मुझ से खो गया तोबा तोबा,

मेरे दिल का वो हक़दार हुआ तोबा तोबा ।

हा वफा वफा फ़िज़ायो में गुल गयी तोबा तोबा ,

वो इस कदर वफादार हुआ तोबा तोबा ।

अर्पण मेरी बिगड़ी कोई तो बनाये ,

ऐसा ना कोई अवतार हुआ तोबा तोबा .


राजीव अर्पण।