Monday 26 August 2013

गहरी साजिश

                गहरी साजिश 
गहरी साजिश कर दुनिया से यह दुनिया दारी है ,
दुनिया में दुनियादार ही जीने का अधिकारी है !
तूँ सारी प्यारी चीजे दुनिया से फरेब से छीन ले ,
यह ही आज कल की सोच है यही समझदारी है !
दुनिया को बुध्दू बना जादू दिखा बहक  जा  ,
जिन्दगी एक खेल है तू रहबर है मदारी  है !
 लुटने वाले ना समझे गे तेरे प्यार तेरी वफा को 
होश कर समझदार बन ,क्यू हुआ जा रहा भिखारी है ,
माना के तूं उसे प्यार करता है दिलो जान  से ,
अर्पण खुद को भी बचाना खुदारी है तेरी जुमेदारी है !
                                  राजीव अर्पण 
                 **************
           जिंदगी की चाल 
सुस्त है जिंदगी की चाल ,
  जरा तेज कर दे ,
ऐ मेरे रहबर मेरे मसीहा ,
मेरी झोली फूलो से भर दे !
तरसता है जिया ,
 दामन नही भरता ,
मुझे कोई महबूब दे ,
मुझे तूं मशहूर कर  दे !
सुस्त है जिंदगी की चाल ,
  जरा तेज कर दे !
                           राजीव अर्पण फिरोजपुर 
               शहर पंजाब भारत 

Saturday 17 August 2013

सावन की राते

           सावन की राते 
सावन की राते है ,
करनी तुम से बाते है !
दिल के अरमानो को ,
हम प्यार से सहलाते है !
         सावन की राते  है !
चाँद की चाँदनी भी ,
तेरे जोवन पर ठहर गई है ,
उठी जो ये चाँदी सी घटा है ,
ये तेरी अंगडाई से घटा है !
चलती जो यह शीतल पवन है ,
तेरे-मेरे रोम -रोम का चलन है !
दी हमे जीवन की सोगाते है ,
दो बदन चादनी में नहाते है !
         सावन की राते है 
बदलो से भरा आसमान 
चुप है तेरी-मेरी तरह ,
मिलते है एक दूसरे से !
धीमे से फूस-फसते है ,
फुहार धरती में समाती है ,
बदनो से अदभूत खशबू आती है 
सरगम सा शोर है ,
चलती अपनी श्वासे है !
          सावन की राते है !
मिल के बरस ही गये ,
कुछ धीमा सा शोर हुआ ,
कुछ घटा ,घटायो ने देखा !
बदनो में अपने जोर हुआ ,
हुई जोर से बरसाते है !
          सावन की राते है 
   राजीव अर्पण  
 

Tuesday 6 August 2013

गुम

            गुम 
मेरे लिखने की वो परवाज गुम ,
साज गुम आवाज गुम  !
लिखने के वो राज गुम ,
मुंह वोलते वो अंदाज गुम !
पैसे के दहकते मरुस्थल में ,
इश्क के वो रिवाज गुम !
दिल से आती थी दिमाग में ,
उस गजल का अगाज गुम !
मुझे देख कर सवारती थी लटे ,
उसके वो नखरे-नाज गुम !
              राजीव अर्पण 
           ************
          लफ्ज 
लफ्ज दिये आवाज ना दी . 
मुझे जीने के लिये परवाज ना दी 
 
                 राजीव अर्पण 

Sunday 4 August 2013

हसीन जलवे

        हसीन जलवे 
कितने हसीन जलवे है दिल लुभाने के लिये ,
पर तेरे बस में नही ,उन्हें  पाने के  लिये !
हाय वो हसीन ,यह हसीन ,इस की आंखे ,
उस का बदन  यह है तुम्हे तडफाने के लिये !
पा तो लेता उन्हें पर जमीर खो जाता ,
हम बुझ दिल ही सही इस जमाने के लिये !
तुम जो गुजरती थी साँस रोके पांव थामे ,
इसी लिये तेरा नाम चुराया है इस अफसाने के लिये !
सनम बन अर्पण का झूठा ही सही ,
चंद गजले लिखू लूगा ,दिल प्रचाने के लिये !
                              राजीव अर्पण 
 
 

Friday 2 August 2013

तपती जमीन पर

        तपती जमीन पर 
तपती जमीन पर चले थे हम ,
यह तब कि बात है जब भले थे हम !
उस को जिन्दगी माना दिल में जगहा दी ,
कम उमर थे मनचले थे हम !
जोश था ,जवानी थी चाहत थी ,
मगर तब भी गुरबत के तले थे हम !
जवानी में चाह थी असमा पाने की ,
मासूम थे हीनता में पले थे हम !
वो कमसिन थी हुस्न की मल्लिका ,
जब एक दूजे के गले मिले थे हम !
                    राजीव अर्पण 
फिरोजपुर शहर पंजाब भारत