Wednesday 26 September 2012

KON HAI APNA

                 कोन  है अपना 
यहा कोन है अपना जिसे अपना कह सके ,
जालिम दुनिया मे सहारा बना के रह सके !
दिखा मुझे झील से गहरी कजरारी आंखे ,
जिन मे फायदा सोचे बिना हम वह सके !
दिल के जख्मो पे मरहम भी लगायो यारो ,
ताकि फिर से जुल्म तुम्हारे हम सह सके !
दे -दे मखमली हाथ मेरे हाथो मे सनम ,
जिन्दगी का सफर हम प्यार से कर तह सके !
ऐसा रंग दे मुझे अपनी दिवानगी मे अर्पण ,
जन्म -जन्म वो रंग ना कभी लह सके !
                       राजीव अर्पण 
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                  उलफत 
उलफत ही नही जीना भी तो है ,
जाम पे जाम पीना भी तो है !
जो दर्द दिया वो वेहतर है ,
सुख चेन मेरा छिना भी तो है !
                                          राजीव अर्पण 

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